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दो बहनें

कोई एतराज़ नहीं है किन्तु तीन बार प्रतिक्षा करो कि इस मोटर को रथ-यात्रा को समाप्त करके तुम हमारे ही घर लौट चलोगी।"

"चलूंँगी, चलूंँगी, चलूँगी।"

मोटर-यात्रा के बाद दोनों भवानीपुर के घर में लौट आए किन्तु घण्टे में पैंतालीस मील की रफ्तार का वेग रक्त में तब भी जारी था, वह किसी प्रकार रुकना ही नहीं चाहता। संसार का सारा दायित्व, भय और लज्जा इस वेग के सामने विलुप्त हो गए।

कई दिन तक शशांक को सारे कामकाज भूल गए। मन ही मन उसने समझा कि यह अच्छा नहीं हो रहा है। कामकाज का नुक्सान बहुत भारी होना भी असंभव नहीं। रात को बिस्तर पर सोए सोए वह दुश्चिता-धश दुःसंभावनाओं को बढ़ा-बढ़ाकर देखता। किन्तु दूसरे दिन फिर 'स्वाधिकार प्रमत्त' मेघदूत के यक्ष के समान हो जाता। एक बार शराब पीने पर उसके अनुताप को ढकने के लिये फिर से पीना पड़ता है।

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