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शशांक

कुछ दिन इसी प्रकार बीते। आँखों में खुमारी आई, मन आविल हो गया।

अपने को ठीक-ठीक समझने में ऊर्मि को थोड़ा समय लगा किन्तु एक दिन वह अचानक चौंक उठी। अपनेको उसने समझा।

न जाने क्यों मथुराभैया से यह डरा करती, बराबर उनकी नज़र बचाकर निकल जाने का प्रयत्न करती। उस दिन मथुरा प्रातःकाल दीदी के घर आया और दुपहरी तक रहकर चला गया। उसके बाद दीदी ने उर्मि को बुलवा भेजा। उसका मुंँह कठोर होकर भी शान्त था। बोली, "प्रतिदिन उनके कामकाज में विघ्न डालकर यह क्या अनर्थ कर रखा है तूने, पता है?"

ऊर्मि डर गई। बोली, "क्या हुआ है?" दीदी ने---"मथुराभैया बता गए हैं कि कुछ दिनों से तेरे बहनोई अपना काम बिल्कुल नहीं देख रहे हैं। जवाहरलाल पर भार दिया था, उसने खुले-हाथ माल-मसाले की

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