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दो बहनें

नये संस्करण के केशोद्गम के साथ सुगन्धित तेल का संयोग-साधन शशांक के सिर में यह पहली बार ही जुटा है। लेकिन आजकल केशोन्नति-विधान के प्रति अनादर से ही उसकी अन्तर्वेदना पकड़ी गई है। सो भी इतनी अधिक कि उसे उपलक्ष्य बनाकर प्रकट या अप्रकट तीव्र हँसी भी अब चल नहीं सकती। शर्मिला की उत्कंठा ने उसके क्षोभ को अभिभूत कर दिया। पति के प्रति करुणा और अपने प्रति धिक्कार से उसका हृदय फटने लगा, रोग की पीड़ा और भी बढ़ने लगी।

मैदान में क़िले के फ़ौजदारों की लड़ाई का खेल होनेवाला था। शशांक ने डरते-डरते पूछा--"चलोगी ऊर्मि, देखने? अच्छी-सी जगह रिज़र्व करा ली है मैंने।"

ऊर्मि के कोई उत्तर देने से पहले ही शर्मिला बोल उठी, "जायगी क्यों नहीं, ज़रूर जायगी। ज़रा बाहर घूम आने के लिये वह छटपटा रही है।"

बढ़ावा पाकर दो दिन बीतते-न-बीतते उसने फिर पूछा--"सर्कस?"

इस प्रस्ताव में ऊर्मिमाला का ही उत्साह दिखाई दिया।

इसके बाद, "बोटैनिकल गार्डन?"

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