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दो बहनें

इसमें ज़रा बाधा महसूस हुई। दीदी को छोड़कर देर तक बाहर रहने के पक्ष में ऊर्मि का मन राय नहीं देता।

दीदी ने स्वयं शशांक का पक्ष लिया। दुनिया भर के मजूरों के बीच काम करते-करते दुपहरी भर हैरान होते हैं, सारा दिन केवल धूल-बालू में ही कट जाता है, बाहर की हवा न खा आने से तो शरीर ही भुरकुस हो जायगा।

इसी युक्ति के बल पर स्टीमर में राजगंज तक धूम आना भी असंगत नहीं मालूम हुआ।

शर्मिला मन ही मन कहती, जिसके लिये उन्हें काम-काज के छूट जाने की चिन्ता नहीं है, उसका छूटना उन्हें बर्दाश्त नहीं होगा।

शशांक को किसीने स्पष्ट रूप से कहा नहीं था लेकिन चारों ओर से वह एक अव्यक्त समर्थन पाने लगा। शशांक ने एक प्रकार से ठीक ही कर लिया कि शर्मिला के मन में कोई विशेष पीड़ा नहीं है, उन दोनोंको एकत्र प्रसन्न देखकर ही यह प्रसन्न रहेगी। साधारण स्त्री के लिये यह संभव नहीं हो सकता था पर शर्मिला तो असाधारण है। शशांक जिन दिनों नौकरी करता था

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