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दो बहनें

आज वह कुछ भी बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी। घर में जब कोई नहीं होता, उस समय केवल बार-बार यही चिल्ला उठती कि "सब मिथ्या है, मिथ्या है, मिथ्या है, क्या होगा इस ल से!"

रात को उसे नींद नहीं आई। सबेरे मोटर गाड़ी दरवाज़े पास से निकल गई, आवाज़ शर्मिला के कानों तक पहुँची। वह फफक-फफककर रो पड़ी, "ठाकुर तुम झूठ हो!"

यहाँ से रोग तेज़ी से बढ़ चला। दुर्लक्षण जिस दिन अत्यन्त प्रबल हो उठा उस दिन शर्मिला ने पति को बुलवाया। सायंकाल का समय था, घर में धुँधला प्रकाश। नर्स को हट जाने का संकेत किया। पति को पास बैठाकर हाथ पकड़कर बोली, "जीवन में मैंने भगवान् से जो घर पाया था वह तुम्ही हो। उस-योग्य शक्ति मुझे उन्होंने नहीं दी। जितना कर सकी, किया। दोष बहुत हुए हैं, क्षमा करना।"

शशांक जाने-क्या कहने जा ही रहा था कि शर्मिला बाधा देकर बोली, "ना, कुछ मत कहो। ऊर्मि को तुम्हारे हाथों दिए जा रही हूँ। वह मेरी अपनी बहन है। उसमें तुम मुझीको पाओगे,--और भी बहुत कुछ पाओगे जो

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