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दो बहनें
मुझमें नहीं पा सके। नहीं, चुप रहो, कुछ बोलो मत, सिफ सुन लो। मरण-काल में हो मेरा सौभाग्य पूर्ण हुआ, तुम्हें सुखी कर सकी!"
नर्स ने बाहर से आवाज़ दी---"डाक्टर साहब आए हैं।"
शर्मिला ने जवाब दिया---"लिवा लाओ।"
बात वहीं बंद हो गई।
शर्मिला के मामा सब प्रकार को अशास्त्रीय चिकित्सा में उत्साही थे। इन दिनों वे एक संन्यासी की सेवा में नियुक्त थे। जब डाकृरों ने कह दिया कि अब कुछ करने को नहीं रह गया तो उन्होंने ज़िद की कि हिमालय की गुहा से आए हुए बाबाजी की दवा भी आज़मा ली जानी चाहिए। न जाने कौन-सी तिब्बती जड़ी का चूर्ण और प्रचुर दूध---यही दवा के उपकरण थे।
शशांक किसी प्रकार नीम-हकीमी को बर्दाश्त नहीं कर सकता। उसने आपत्ति की। शर्मिला बोली, "और कोई फल तो होगा नहीं लेकिन मामाजी को सन्तोष हो जायगा" ।
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