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पृष्ठ:दो बहनें.pdf/१२७

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दो बहनें

ज़रा-सी कोशिश करने से ही पा जाओगे। उस देश में कोई बात नहीं उठेगी।"

शर्मिला ने किसीको दुविधा में पड़ने का अवकाश ही नहीं दिया। जाने की तैयारी होने लगी। ऊर्मि तब भी उदास होकर कोने-कोने छिपती फिरती।

शशांक ने उससे कहा, "आज यदि तुम मुझे छोड़ जाओ तो क्या दशा होगी, सोचकर देखो।" ऊर्मि ने जवाब दिया, "मैं कुछ सोच ही नहीं पा रही। तुम दोनों जो करोगे वही होगा।"

सब कुछ सम्हाल लेने में थोड़ा समय लगा। इसके बाद जब समय नज़दीक आया तो ऊर्मि ने कहा--"और सात दिन रुक जाओ, काकाजी से कुछ ज़रूरी बातें कर लू।"

ऊर्मि चली गई।

इसी समय मथुरा मुँह भारी किए शर्मिला के पास आया। बोला, "तुम लोग ठीक समय पर ही जा रहे हो। तुम्हारे साथ बातचीत पक्की हो जाने के बाद ही मैंने आपस में शशांक के साथ काम बाँट लिया था। अपने साथ उसके नफ़े-नुकसान की ज़िम्मेवारी नहीं रखी।

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