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पृष्ठ:दो बहनें.pdf/१३२

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दो बहनें

"क्या हुआ, मुझसे समझाकर कहो।" शशांक ने कहा---"मैंने फिर तुमसे रुपया कर्ज़ लिया है, यह बात छिपाओ मत।"

शर्मिला बोलो,---"अच्छा, बहुत अच्छा।"

शशांक ने कहा--"उसी दिन की तरह आज से कर्ज़ चुकाने जाता हूँ। जो डुबाया है उसे अवश्य निकाल लाऊँगा, यही मेरी प्रतिज्ञा है, सुन रखो। तुमने जिस प्रकार मेरे ऊपर विश्वास किया था उसी प्रकार फिर करना।"

शर्मिला ने स्वामी की छाता पर सिर रखकर कहा....."तुम भी मेरे ऊपर विश्वास रखना। मुझे काम-काज समझा देना, तैयार कर लेना, ऐसी शिक्षा आज से देना कि मैं तुम्हारे के योग्य हो सकूँ"

बाहर से आवाज़ आई, "चिट्टी।"

ऊर्मि के हाथ की दो चिट्ठियाँ थीं। एक शशांक के नाम---

"मैं इस समय बंबई के रास्ते में हूँ। विलायत जा रही हूँ। पिताजी के आदेश के अनुसार डाक्टरी सोखकर आऊँगी। छः-सात वर्ष लग सकते हैं। तुम लोगों

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