पृष्ठ:दो बहनें.pdf/१३५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
दो बहनें

उसकी चुनाई में कहीं एक सन्धि थी। कारण, शशाङ्क और शर्मिला में भीतर-भीतर जोड़ नहीं मिली; तथापि ऊपर-ऊपर से छुपी हुई दरार पर नज़र भी नहीं पड़ी। अचानक बाहर से भहराकर गिरने से पहले क्या वे लोग कोई इस बात को जान सके थे? जब जान सके तब तो नसीब ही फुट चुका था। नेक सलाह देने वाले कहेंगे, फुटे नसीब पर बैण्डेज बाँधकर भले आदमी की तरह उसी पुराने रास्ते पर ठोकर खाते-खाते, लाठी टेककर लँगड़ाते-लँगड़ाते चलने जाना ही कर्तव्य है। शशाङ्क भी उसी तरह चलता जाता मगर शर्मिला कह बैठी; उस तरह चलने में किसी पक्ष को सुख नहीं होगा:--—स्पर्धापूर्वक उसने अपने विशेष प्लान के अनुसार भाग्य में संशोधन करने का प्रस्ताव जनाया। किन्तु भाग्य के लेखे पर कलम चलाना इतना आसान नहीं। इसे समझा ऊर्मिमाला ने। भूचाल-केन्द्र के ऊपर कच्चे माल-मसाले डाँवाडोल आवास में आश्रय लेने की राज़ी नहीं हुई। इसीलिये भाग खड़ी हुई। इसके बाद क्या हुआ सो कौन बताए। समय के साथ शायद ऊपर का कटा हुआ दाग़ मिट गया, मगर बीच-बीच में धक्का खाकर अन्दर की टूटी-फटी नसों में क्या आज भी पीड़ा टीस नहीं उठती? पीड़ा जिसे मिलती है उसीपर हम लोग मुन्सिफ़ी किया करते हैं लेकिन पीड़ा मिटाने का सारा दायित्व क्या हमेशा उसीका होगा? बिजली गिरने

१२२