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दो बहनें

मिनेशन--आत्म-निर्णय--के रास्ते। पति से बोली, "अब और नहीं, फौरन काम छोड़ दो!"

छोड़ देने से अपमान की जोंक छाती से खिसक पड़ती, लेकिन ध्यान-दृष्टि के सामने फैला हुआ था बँधी तनख्वाह का अन्नक्षेत्र, और उसके पश्चिमी दिगंत में दीख रही थी पेन्शन की अविचलित स्वर्णोज्ज्वल रेखा।

शशांकमौलि जिस वर्ष एम. एस-सी. डिग्री के सर्वोच्च शिखर पर हाल ही में अधिरूढ़ हुआ था, उसी साल उसके श्वसुर ने शुभकर्म में विलंब करना उचित नहीं समझा–--शशांक के साथ शर्मिला का विवाह हो गया। धनी ससुर की सहायता से ही उसने इन्जानियरिंग पास की। उसके बाद नौकरी में शीघ्र उन्नति का लक्षण देखकर राजारामबाबू जामाता की भावी सफलताओं के क्रम-विकास का निर्णय करके आश्वस्त हो गए। लड़की ने भी आज तक अनुभव नहीं किया कि उसकी दुनिया बदल गई है। सिर्फ़ यहाँ अभाव नहीं है यही बात नहीं, बल्कि पिता के घर की चाल-चलन भी यहाँ ज्यों को त्यों मौजूद थी। कारण यह है कि इस पारिवारिक दो-अमली शासन की व्यवस्था-विधि शर्मिला के अधिकार में ही थी। उसके सन्तान नहीं हुई, होने की आशा भी

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