सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:दो बहनें.pdf/२८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
दो बहनें

ज़ोर इतना कड़ा होता है। और कुछ नहीं, स्त्री का ऋण तो पहले चुकाना ही होगा, फिर धीरे-धीरे चलने का समय निकाला जा सकेगा। बाएँ हाथ की कलाई पर घड़ी, सिर पर सोले की टोपी, आस्तीन चढ़ी हुई, ख़ाक़ी पैन्ट पर चमड़े का कमरबन्द कसा हुआ, मोटे तल्लेवाला जूता, धूप से बचाने के लिये आँखों पर रङ्गीन चश्मा--शशांक कमर कसकर काम में लग गया। स्त्री का ऋण जब प्रायः चुकने आया तब भी स्टीम का दम कम नहीं हुआ। मन तब तक गर्म हो उठा था।

इसके पहले गृहस्थी में आय और व्यय की धारा एक ही नाले में बहती थी। अब इसमें दो शाखाएँ हो गईं। एक गई बैंक की ओर और दूसरी घर की ओर। शर्मिला का पावना पहले की तरह ही है। वहाँ के लेन-देन का रहस्य शशांक को नहीं मालूम। उधर व्यवसाय का वह चमड़े से बँधा हुआ खाता शर्मिला के लिये भी एक दुर्गम दुर्ग के समान है। इसमें कोई नुकसान नहीं, किन्तु पति के व्यावसायिक जीवन का कक्ष-पथ उसके संसार-चक्र से बाहर पड़ जाने से उस ओर से उसका विधि-विधान उपेक्षित होता रहता है। गिड़गिड़ाकर कहती, "बहुत-ज्यादती मत करो, शरीर टूट जायगा।" किन्तु कोई उधर व्यवसाय का

१५