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पृष्ठ:दो बहनें.pdf/३२

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दो बहनें

भी पुरुष अपने को पूरा नहीं मिला पाता। थोड़ा-सा जगह ख़ाली छोड़ देता है। वहीं उसके पौरुष का अभिमान रहता है।"

लाभ के रुपये से शशांक ने भवानीपुर में मन-माफ़िक एक बड़ा मकान खड़ा किया है। वह उसके शौक़ की चीज़ है। स्वास्थ्य, आराम, श्रृङ्खला के नये-नये प्लैन उसके दिमाग़ में आते हैं। कोशिश है शर्मिला को अचरज में डाल देने की। शर्मिला भी बाकायदा चकित होने में कोई कसर नहीं रखती। इंजीनियर ने एक कपड़े धोनेवाली कल स्थापित की। शर्मिला ने घूम-फिरकर देखा और खूब तारीफ़ की। मन ही मन बोली, "कपड़े आज भी जिस तरह धोबी के घर जाते हैं, कल भी जाएँगे। मैले कपड़ों के गर्दभवाहन को तो समझ गई हूँ किन्तु उसके विज्ञान-वाहन को नहीं समझती।" आलू के छिलके छुड़ानेवाले यंत्र को देखकर यह अचरज से ठक रह गई, बोली, "आलू की रसीली सब्ज़ी बनाने की बारह आना तकलीफ़ इससे जाती रहेगी।" बाद में सुना गया कि वह यंत्र फूटी डेकची, टुटी केटली आदि के साथ एक विस्मृति-शय्या पर नैष्कर्म्य पा गया है।

मकान बनकर जब तयार हो गया तो उस स्थावर

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