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दो बहनें

पदार्थ के प्रति शर्मिला के रूद्ध स्नेह का उद्यम पिल पड़ा। सुभीता यह था कि ईंट-काठ के शरीर में धैर्य अटल बना रहता है। साजने-संवारने के महा उद्यम में दो दो नौकर हाँफ उठे। एक तो भाग ही खड़ा हुआ। कमरों की सजावट शशांक को मन में रखकर होने लगी। बैठकखाने में वह आजकल अक्सर बैठता ही नहीं, फिर भी उसीकी थकी पीठ की रीढ़ के लिये नये फ़ैशन के कुशन सजाए गए; फूलदानी एक-आध नहीं अनेकों; तिपाई पर, टेबुल पर, फूल-कढ़े झालरदार आवरण। सोने के कमरे में आजकल दिन को शशांक का आना एकदम बंद है, क्योंकि उसके आधुनिक पत्रे में रविवार भी सोमवार का जुड़वाँ भाई है। दूसरी छुट्टियों में भी जब काम बंद रहता है तो भी वह कोई न कोई छिटफुट कार्य खोज ही निकालता है, आफ़िसवाले कमरे में प्लैन बनानेवाला तेलहा काग़ज़ या बही-खाता लेकर बैठ जाता है। फिर भी पुराना नियम चल रहा है। मोटी गद्दीवाले सोफ़ा के सामने रेशमी चप्पलों के जोड़े तैयार रहते हैं। वहाँ पहले के समान ही पनबट्टे में पान सजा रहता है। आले पर पर पतले सिल्क का कुर्ता टँगा रहता है, चुनी हुई धोती लटकती रहती है। आफ़िस के कमरे में

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