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दो बहनें

सोचकर देखा, हमारे अस्पताल में तू यदि नीरद की संगिनी होकर काम करे तभी यह काम संपूर्ण होगा और मैं भी निश्चिन्त हो सकूँगा। उसके समान लड़का मैं और पाऊँगा कहाँ?

राजाराम और चाहे जो कर सकते हों हेमन्त का मत अग्राह्य नहीं कर सकते। वह कहा करता, लड़की की पसन्द की उपेक्षा करके माँ-बाप की पसन्द से विवाह करना बर्बरता है। राजाराम ने एक बार तर्क किया था कि विवाह का मामला केवल व्यक्तिगत नहीं, उसके साथ संसार भी जड़ित है, इसीलिये विवाह सिर्फ़ इच्छा-द्वारा नहीं बल्कि अभिज्ञता-द्वारा चालित होना चाहिए। वे तर्क चाहे जैसा करें और उनकी रुचि चाहे जैसी रही हो, हेमन्त पर उनका स्नेह इतना गम्भीर था कि उसकी इच्छा ही इस परिवार में विजयी हुई।

इस घर में नीरद मुखुज्जे का आना जाना होता था। हेमन्त ने उसका नाम दिया था आउल अर्थात् उल्लू। अर्थ पूछने पर यह बताता कि यह आदमी पौराणिक अर्थात् माइथालौजिकल है। उसकी उम्र नहीं है, है केवल विद्या, इसीलिये मैं उसे मिनर्वा का वाहन कहता हूँ। नीरद इनके घर बीच-बीच में चाय पीने आया

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