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दो बहनें

करता। हेमन्त के साथ खूब बहस करता। मन ही मन ऊर्मि को भी निश्चय ही लक्ष्य करता, किन्तु व्यवहार में नहीं। इसका कारण यह है कि इस मामले का यथोचित व्यवहार ही उसके स्वभाव में नहीं है। वह बहस कर सकता है लेकिन बात-चीत करना नहीं जानता। यौवन का उत्ताप यदि उसमें रहा भी हो तो उसका प्रकाश नहीं था, इसीलिये जिन नौजवानों में यौवन पूरी तरह प्रकाशमान होता, उनके प्रति अवज्ञा प्रकट करके ही वह सन्तोष पाता। इन्हीं सब कारणों से कोई भी उसे ऊर्मि के उम्मीदवारों की श्रेणी में गिनने का साहस नहीं करता था। फिर भी ऊपर से दीखने-वाली यह निरासक्ति ही वर्तमान कारण से युक्त होकर उसपर ऊर्मि की श्रद्धा को सम्भ्रम की सीमा में खींच ले गई। राजाराम ने जब स्पष्ट रूप से ही कहा कि यदि लड़की के मन में कोई द्विधा न हो तो नीरद के साथ ही विवाह होने से उन्हें प्रसन्नता होगी, तब लड़की ने अनुकूल इङ्गित से ही सिर हिलाया। केवल इसके साथ इतना और जना दिया कि इस देश की और विलायत की पढ़ाई ख़त्म कर चुकने के बाद ही विवाह होगा। पिता ने कहा,यही ठीक है। किन्तु परस्पर को सम्मति से

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