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दो बहनें

सम्बन्ध पक्का हो जाने के बाद स्पष्ट ही और कोई चिन्ता नहीं रह जाती।

उधर नीरद की सम्मति पाने में देर नहीं लगी, यद्यपि उसकी भावभङ्गी से यही प्रकट हुआ कि विवाह का सम्बन्ध वैज्ञानिक के लिये एक बड़ा भारी त्याग है---प्रायः आत्मघात के आसपास का। शायद इसी दुर्योग को किसी प्रकार शमन करने के उपाय-स्वरूप यही शर्त तय पाई गई कि सब बातों में नीरद ऊर्मि की रहनुमाई करेगा अर्थात् अपनी भावी पत्नी के रूप में उसे धीरे-धीरे अपने ही हाथों तैयार कर लेगा। यह भी होगा वैज्ञानिक ढँग से, दृढ़-नियन्त्रित नियमों के अनुसार,लैबोरेटरी की अभ्रान्त प्रक्रिया के समान।

नीरद ने ऊर्मि से कहा, "पशु-पक्षी प्रकृति के कारखाने से बने-बनाए माल की तरह तैयार निकलते हैं लेकिन मनुष्य कच्चा माल है, उसे तैयार करने का भार स्वयं मनुष्य पर ही है।"

ऊर्मि ने नम्रता के साथ कहा, "अच्छी बात है, परीक्षा कीजिए, बाधा नहीं पाएँगे।"

नीरद ने कहा, "तुममें नाना प्रकार की शक्तियाँ हैं। उन्हें बाँधना होगा तुम्हारे जीवन के एकमात्र लक्ष्य के

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