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पृष्ठ:दो बहनें.pdf/४८

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दो बहनें

चारों ओर। तभी तुम्हारा जीवन सार्थक होगा। किसी अभिप्राय के आकर्षण से विक्षिप्त को संक्षिप्त करना पड़ेगा, वह कसा जायगा, डायनेमिक होगा, तभी उस एकत्व को मारल आर्गेनिज्म कहा जा सकेगा।"

ऊर्मि ने पुलकित होकर सोचा, अनेक युवक तो उनके घर चाय की टेबुल पर उपस्थित हुए हैं, टेनिस कोर्ट में आए हैं परन्तु सोचने के लायक़ बात उन्होंने कभी नहीं कही, दूसरा कोई कहे भी तो जमुहाने लगते हैं। असल में किसी भी बात को अत्यन्त गम्भीर भाव से कहने का एक अपना ढँग है नीरद के पास। वह जो भी कहता, उसीमें ऊर्मि को एक आश्चर्यजनक तात्पर्य मालूम होता, वह उसे अत्यधिक इन्टेलेक्चुअल जान पड़ता।

राजाराम ने अपने बड़े दामाद को भी बुलाया। बीच-बीच में निमन्त्रण का बहाना बनाकर एक-दूसरे से अच्छी तरह परिचय करा देने की चेष्टा की। शशांक ने शर्मिला से कहा, "इस लड़के के पेट की दाढ़ी असहाय है। वह समझता है हम सब लोग उसके विद्यार्थी हैं। सो भी आगे बैठनेवाले नहीं, आख़िरी बेंच के आख़िरी कोनेवाले।"

शर्मिला ने हँसकर कहा, "यह तुम्हारी जेलेसी है। क्यों, मुझे तो यह बहुत अच्छा लगता है।"

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