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दो बहनें

शशांक ने कहा, "छोटी बहन के साथ स्थान-परिवर्तन करने का विचार कैसा है?"

शर्मिला बोली, "तब तो तुम शायद शान्ति की साँस लोगे, मेरी बात और है।"

शशांक के प्रति नीरद का भ्रातृभाव भी कुछ बढ़ा हुआ नहीं लगता। शशांक मन ही मन कहता, 'यह तो मजदूर आदमी है, इसे वैज्ञानिक कौन कहे! हाथ तो हैं लेकिन दिमाग कहाँ!"

शशांक नीरद को लक्ष्य करके साली से मज़ाक करता, "अब पुराना नाम बदलने का मौक़ा आ गया।"

"अंग्रेज़ी मत से?"

"नहीं विशुद्ध संस्कृत मत से।"

"जरा सुनूँ तो सही नया नाम।"

"विद्युत्-लता। नीरद को पसन्द होगा। लैबोरेटरी में इस चीज़ के साथ उसका परिचय हुआ है, इस बार घर में बँधी मिलेगी।"

मन ही मन कहता, 'सचमुच ही यह नाम इसे फबेगा।' जी के भीतर ही भीतर जैसे कोई कुरेद उठता: 'हाय रे, इतने बड़े घमंडी के हाथ में ऐसी लड़की पड़ेगी!'---कहना कठिन

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