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दो बहनें

है कि किसके हाथों पड़ने से शशांक की रुचि को सन्तोष और सान्त्वना मिलती।

थोड़े ही दिनों में राजाराम की मृत्यु हो गई। ऊर्मि के भावी स्वत्वाधिकारी---नीरदनाथ–--ने एकाग्र मन से उसको नये सिरे से गढ़ने का भार सँभाला।

ऊर्मिमाला देखने में जितनी अच्छी है, दिखती उससे भी कहीं अच्छी है। उसके चंचल शरीर में मन की उज्ज्वलता झिलमिलाया करती है। उसकी उत्सुकता सब विषयों में है। सायंस में जितना उसका मन लगता है, साहित्य में उससे ज्यादा ही लगता है, कम नहीं। मैदान में फुटबाल का खेल देखने में उसका आग्रह असीम है। सिनेमा देखने को भी वह बुरा नहीं समझती। प्रेसिडेन्सी कालेज में विदेश से कोई फ़िज़िक्स का व्याख्याता आया है तो वह वहाँ भी हाज़िर है। रेडियो सुनने के लिये कान खड़े रखती है। ख़ूब संभव है, सुनकर कह उठे, छि:, लेकिन कौतूहल भी कम नहीं है। बारात के आगे आगे बजते हुए बाजों के साथ वर निकल जाता तो दौड़कर बरामदे में आ खड़ी होती। चिड़ियाख़ाने में बार-बार सैर करने जाती, आनन्द भी पाती, विशेषकर बंदरों के

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