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दो बहनें

पिंजड़ों के पास खड़े होने में तो उसकी ख़ुशी का ठिकाना ही नहीं रहता। पिता जब मछली पकड़ने जाते तो बंसी लेकर वह भी बग़ल में बैठ जाती। टेनिस खेलती,और बैड्मिंटन में तो उस्ताद थी। यह सब उसने अपने बड़े भैया से सीखा था। पतली तो यह संचारिणी लता के समान थी, हवा लगी नहीं कि झूम उठी। साज-सिंगार सहज और परिपाटीयुक्त। वह जानती है कि किस प्रकार साड़ी को इधर-उधर थोड़ा खींच-खाँचकर घुमा-फिराकर ढीला या चुस्त करके शरीर की शोभा बढ़ाई जा सकती है और फिर भी उसका रहस्य भेद नहीं किया जा सकता। गाना अच्छा नहीं जानती लेकिन सितार बजाती है। यह संगीत देखने की चीज़ है या सुनने की,कौन बताए! ऐसा लगता कि उसकी चंचल अँगुलियाँ कोलाहल कर रही हैं। उसे बोलने के विषय की कभी कमी नहीं होती, हँसने के लिये उचित कारण का इंतज़ार नहीं करना पड़ता। साथ देने की उसकी क्षमता अजस्त्र थी, जहाँ रहती वहाँ के अन्तराल को अकेली हो भर रखती। सिर्फ नीरद के पास वह कुछ और ही हो जाती है। मानों पालवाली नाव के लिये हवा की गति ही बंद हो गई हो और वह रस्सी के खिंचाव से नम्र मंथर गति से चलने लगी हो।

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