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दो बहनें

सभी लोग कहते, ऊर्मि का स्वभाव उसके भाई के समान ही प्राण से परिपूर्ण है। ऊर्मि जानती है, उसके भाई ने ही उसके मन को मुक्ति दी है। हेमन्त कहा करता, 'हमारे घर अलग-अलग साँचों के समान होते हैं। मिट्टी के मनुष्य ढालना ही उनका काम है। तभी तो इतने दिनों से विदेशी बाजीगर इतनी सरलता से तेतीस करोड़ पुतलियों को नचाए जा रहा है।' वह कहता, 'जब समय आएगा तो मैं इस सामाजिक मूर्तिपूजा को तोड़ने के लिये कालापाहाड़-जैसा आचरण करूगा।' उसे समय नहीं मिला, लेकिन ऊर्मि के मन को वह ख़ूब सजीव बनाकर छोड़ गया ।

कठिनाइयाँ खड़ी हो गई। नीरद की कार्यप्रणाली अत्यन्त विधिवत् थी। उसने ऊर्मि के लिये पढ़ाई का क्रम बाँध दिया। उपदेश देते हुए कहा, "देखो ऊर्मि, रास्ता चलते-चलते मन को केवल छलका डालोगी तो रास्ते के अंत में जब पहुँचोगी तो घड़े में बच ही क्या रहेगा!"

कभी कहता, "तुम तितली की तरह चंचल होकर घूमती-फिरती हो, संग्रह कुछ भी नहीं करतीं। होना पड़ेगा मधुमक्खी की तरह। प्रत्येक मुहूर्त का हिसाब

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