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दो बहनें

रखना पड़ेगा। जीवन कोई विलासिता तो है नहीं।"

हाल ही में नीरद ने इम्पीरियल लायब्ररी से मँगाकर शिक्षातत्व पर लिखी हुई कुछ पुस्तकें पढ़नी शुरू की हैं। उनमें ऐसी ही सब बातें लिखी हैं। उसकी भाषा पुस्तकी भाषा है, क्योंकि उसके पास अपनी कोई सहज भाषा नहीं है। ऊर्मि को अपने अपराधी होने में कोई सन्देह नहीं रहा। व्रत उसका महान् है और फिर भी बात-बात में मन इधर-उधर खिसक पड़ता है। वह अपने-आपको बराबर धिक्कार दिया करती है। सामने ही दृष्टान्त है नीरद का; कैसी आश्चर्य दृढ़ता है, कैसा एकाग्र लक्ष्य है, सब प्रकार के आमोद और आहादों के प्रति कैसी कठोर विरोधिता है! ऊर्मि की टेबुल पर यदि वह कहानी किंवा किसी हल्के साहित्य की पुस्तक देखता है तो तुरन्त उसे ज़प्त कर लेता है। एक दिन सायंकाल ऊर्मि की देखरेख करने के लिये आया तो सुना कि वह अंग्रेजी नाट्यशाला में शालीवैन के मिकाडो आपेरा का सायंकालिक अभिनय देखने गई है। जब उसका भाई जाता था तो ऐसा सुअवसर प्रायः ही हाथ से निकल नहीं पाता था। उस दिन नीरद ने उसका यथोचित तिरस्कार

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