भाषा अंग्रेजी हो जाती है। उधर नीरद के उपदेश का विषय जब अत्यन्त उच्च श्रणी का होता है तो अंग्रेज़ी ही उसका वाहन बनती है। नीरद को सबसे ख़राब तब लगता है जब निमन्त्रण-आमन्त्रण में ऊर्मि अपनी दीदी के यहाँ जाती है। केवल जाती ही नहीं, जाने के लिये बहुत आग्रह प्रकट करती है। उसके साथ उर्मि का जो आत्मीय सम्बन्ध है वह नीरद के साथवाले सम्बन्ध को खण्डित करता है।
नीरद ने मुख गम्भीर करके एक दिन ऊर्मि से कहा, 'देखो ऊर्मि, कुछ बुरा न मानना। क्या करूँ बताओ, तुम्हारा दायित्व मुझपर है इसीलिये कर्तव्य समझकर अप्रिय बात कहनी पड़ती है। मैं तुम्हें सावधान किए देता हूँ, शशांकबाबू के घरवालों के साथ सब समय तुम्हारा मिलना-जुलना तुम्हारे चरित्र-गठन के लिये अस्वास्थ्यकर है। आत्मीयता के मोह से तुम अंधी हो गई हो, लेकिन मैं दुर्गति की सारी सम्भावनाएँ स्पष्ट देख रहा हूँ।'
ऊर्मि की चरित्र नामक जो वस्तु है, कम-से-कम उसकी पहली बन्धकी दलील नीरद के सन्दूक में ही बन्द है, उस चरित्र में यदि कहीं कुछ हेरफेर हो तो नुक़सान