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ऊर्मिमाला

नीरद ने रिसच का जो काम लिया था वह समाप्त हो गया। उसने लेख को यूरोप के किसी वैज्ञानिक समाज के पास भेज दिया। उस समाज ने उसकी प्रशंसा की और साथ ही साथ नीरद के लिये एक स्कालरशिप भी जुट गई,-उसने निश्चय किया कि वहीं के विश्वविद्यालय में डिग्री लेने के लिये समुद्र का रास्ता लेगा। विदा लेते समय कोई करुण वार्तालाप नहीं हुआ। चलते समय बार-बार सिर्फ़ यही कहता रहा, "मैं जाता हूँ पर मुझे डर है कि तुम अपने कर्तव्य-पालन में शिथिलता का परिचय दोगी।" ऊर्मि ने कहा, "आप कोई फ़िक्र न करें।" नीरद ने जवाब दिया, "कैसे चलना होगा, पढ़ाई-लिखाई किस प्रकार होगी इन बातों के लिये एक विस्तृत नोट दिए जा रहा हूँ।" "ऊर्मि ने कहा, "मैं ठीक इसीके अनुसार ही चलूँगी।"

"लेकिन तुम्हारी उस आलमारी की किताबों को मैं अपने घर में बंद कर देना चाहता हूँ।"

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