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दो बहनें

कहना चाहता है कि उनके संगदोष से और उनके घर की आबहवा से अपने-आपको बचाना ऊर्मि के लिये विशेष आवश्यक है। अगर ऊर्मि का मन उनकी समान-भूमि पर उतर आवे तो अधःपतन होगा।

ऊर्मि बोली, "आप इतने अधिक उद्विग्न क्यों हो रहे हैं।"

"क्यों हो रहा हूँ सुनोगी? बुरा तो नहीं मानोगी?"

"आप ही से सब बात सुनने की शक्ति पाई है। जानती हूँ, सहज नहीं है तो भी सहन कर सकती हूँ।"

"तो कहता हूँ, सुनो। तुम्हारे स्वभाव के साथ शशांकबाबू के स्वभाव का सादृश्य है। यह बात मैंने देखी है। उनका मन एकदम हल्का है। वही तुमको अच्छा लगता है। बताओ सच कहता हूँ कि नहीं?"

ऊर्मि सोचने लगी, यह आदमी सर्वज्ञ तो नहीं है। निस्संदेह वह अपने बहनोई को ख़ूब पसंद करती है, इसका प्रधान कारण यह है कि शशांक खिलखिलाकर हँस सकता है, ऊधमी है, मज़ाक करता है और ठीक जानता है कि ऊर्मि को कौन सा फूल पसंद है और किस रंग की साड़ी उसे भाती है।

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