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दो बहनें

ऊर्मि ने कहा, "हाँ, वे मुझे अच्छे लगते हैं यह बात ठीक है।"

नीरद ने कहा, "शर्मिला दीदी का प्रेम स्निग्ध गम्भीर है। उनकी सेवा मानों एक पुण्य-कर्म है। अपने कर्तव्यकर्म से वे छुट्टी नहीं लेतीं। उसीके प्रभाव में शशांकबाबू ने एकाग्र चित्त से काम करना सीखा है। किन्तु जिस दिन तुम भवानीपुर जाती हो उसी दिन उनका आवरण हट जाता है। तुम्हारे साथ नोक-झोंक शुरू हो जाती है, वे तुम्हारे केश के काँटे निकालकर जूड़ा खोल देते हैं, तुम्हारे हाथ में पढ़ने की किताब देखकर ऊँची आलमारी के सिरे पर रख देते हैं। टेनिस खेलने का शौक़ अचानक प्रबल हो उठता है, बहुत से काम पड़े हों तो भी।"

ऊर्मि को मन ही मन मानना पड़ा कि शशांक इस प्रकार शरारत करते हैं इसीलिये उसे अच्छे लगते हैं। उनके पास जाने पर उसका अपना लड़कपन तरङ्गित हो उठता है। वह भी उनके ऊपर कम अत्याचार नहीं करती। दीदी उन दोनों की शरारत देखकर अपनी शान्त, स्निग्ध हँसी हँसती रहती हैं। कभी-कभी मीठी फटकार भी बताती हैं लेकिन वह भी दिखावा ही होता है।




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