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दो बहनें

और बाक़ी समय अपने को मानों ज़नानख़ाने में बन्द करके रखती। दिन भर के बाद घर लौटती। लौटने पर उसका थका हुआ मन जितना ही छुट्टी पाना चाहता, उतनी ही निठुरता के साथ उसे अध्ययन की ज़ंजीरों में बाँधकर रोक रखती। पढ़ाई अग्रसर नहीं होती, एफ ही पन्ने पर मन बारंबार व्यर्थ ही चक्कर काटता रहता, तो भी यह हार नहीं मानना चाहती। नीरद मौजूद नहीं है इसीलिये उसकी दूरवर्ती इच्छाशक्ति उसपर अधिक प्रभाव डालने लगती है।

जब काम करते-करते पहले की बातें बार-बार मन में चक्कर काटने लगतीं तो वह अपने को सबसे अधिक धिक्कार देती। युवकों में उसके अनेक भक्त थे। उन दिनों उसने किसी की उपेक्षा भी की है और किसी के प्रति मन आकर्षित भी हुआ है। प्रेम परिणत नहीं हुआ लेकिन प्रेम की इच्छा उस समय मृदु-मन्द वासन्ती वायु के समान मन में घूमती रही है। इसीलिये वह अपने मन में गुनगुनाकर गान करती। अच्छी लगनेवाली कविताओं की नक़ल कर लेती। जब मन अत्यन्त उतावला हो जाता तब सितार बजाने लगती। आजकल किसी-किसी दिन सायंकाल जब आँखें किताब से उलझी

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