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दो बहनें

रहती हैं, वह अचानक चौंक उठती है और ऐसा मालूम होता है कि उसके मन में पुराने दिनों के किसी ऐसे मनुष्य का चित्र घूम रहा है जिसे उसने कभी विशेष प्रश्रय नहीं दिया। यहाँ तक कि उस आदमी का अविश्राम आग्रह उन दिनों उसे नाराज़ किया करता। आज शायद उसका वही आग्रह ऊर्मि को भीतरी अतृप्ति को वेदना को उसी प्रकार स्पर्श कर रहा है, जिस प्रकार तितली के क्षणिक हल्के पङ्ख फूल को वसन्त का स्पर्श दे जाते हैं।

इन विचारों को वह जितने ही वेग से मन से दूर करना चाहती, उतनी ही तेज़ी से उस वेग का प्रतिघात भी उसके मन में उन्हीं विचारों को ठेल देता। डेस्क पर नीरद का एक फोटोग्राफ रखा है। उसकी ओर एक-टक देखता रहती। उस मुख में बुद्धि की दीप्ति तो है परन्तु आग्रह का कोई चिह्न नहीं। वह उसे पुकारता ही नहीं, तो फिर उसके प्राण जवाब दें तो किसे दें? मन ही मन सिर्फ़ यही जप किया करती, 'कैसी प्रतिभा है, कैसी तपस्या है, कैसा निर्मल चरित्र है, कैसा अचिंतनीय मेरा सौभाग्य है!'

एक बात में नीरद की जीत हुई है, उसे भी बता देना आवश्यक है। नीरद के साथ ऊर्मि के विवाह की बात

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