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दो बहनें

जब तै हुई तो शशांक और उसीके समान कुछ और शक्की आदमियों ने व्यंग्य किया। कहा, 'राजाराम बाबू सीधे आदमी हैं, समझ रक्खा है कि नीरद आडियलिस्ट है। उसका आइडियलज्म़ चुपचाप ऊर्मि के रुपयों की थैली के भीतर जो अंडा से रहा है सो उसे क्या लम्बे सुन्दर वाक्यों से ढका जा सकता है? उसने निश्चय ही अपने आपको उत्सर्ग किया है लेकिन जिस देवता के निकट उत्सर्ग किया है उसका मन्दिर इम्पीरियल बैंक में है। हम लोग सीधे श्वसुर को बता देते हैं कि रुपये की ज़रूरत है और वह रुपया पानी में नहीं पड़ेगा, बल्कि उन्हींकी लड़की की सेवा में लगेगा। लेकिन ये महान् पुरुष हैं, कहते हैं महान् उद्देश्य के लिये विवाह करेंगे। उसके बाद नित्य ही उस उद्देश्य का तरजुमा श्वसुर की चेक-बुक के रूप में करते रहेंगे।'

नीरद जानता था कि ऐसी बातों का उठना अपरिहार्य है। ऊर्मि से बोला, 'मेरे विवाह करने की एक शर्त है; तुम्हारे रुपयों में से मैं एक पैसा भी नहीं लूँगा, मेरी अपनी कमाई ही मेरा एकमात्र अवलम्बन होगी।' श्वसुर ने जब उसे यूरोप भेजने का प्रस्ताव किया तो वह किसी

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