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दो बहनें

अपराधी तो निकल जाएगा, चोट खाकर मरेगा निरपराध।'

शशांक ने चिन्तित होकर कहा, देह की तलाशी यथाशास्त्र चलती रहे किन्तु चोट किसी प्रकार नहीं लगने दी जाएगी।'

इसी समय शशांक के हाथ में दो बड़े-बड़े काम आए, एक गंगा के किनारे जूट मिल में और एक टालीगञ्ज की ओर मीरपुर के ज़मींदारों के नये उद्यानगृह में। जूट मिल की कुली-बस्ती का काम ख़त्म करने की मीयाद तीन महीने की थी। नाना स्थानों में कुछ ट्यू बवेल बैठाने का काम था। शशांक को बिल्कुल फ़ुरसत नहीं थी। शर्मिला की बीमारी से प्रायः ही उसे रुक जाना पड़ता, हालाँ कि उसकी उत्कंठा काम के लिये बराबर बनी रहती।

इतने दिन विवाह हुए हो गए, लेकिन शर्मिला को ऐसी कोई बीमारी नहीं हुई जिसे लेकर शशांक को विशेष चिन्तित होना पड़े। इसीलिये इस बार की इस बीमारी के उद्वेग से उसका मन बच्चों की तरह छटपटा उठा है। काम-काज छोड़कर, घूम-फिरकर बिस्तर के पास निरूपाय भाव से आकर बैठ जाता। सिर पर हाथ

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