सम्बन्धी पुस्तकों के छानने का सुयोग नहीं मिला, क्योंकि विशेषज्ञ लोग भी रोग की संज्ञा निणय नहीं कर सके थे।
ऊर्मि ने सोचा, उसे शासनकर्ता का काम मिला है। इसीलिये उसने मुख गम्भीर करके दीदी से कहा, "डाक्टर की बात जिसमें ठीक-ठीक पालन की जाए उसे देखने का भार मेरे ऊपर है। देखो, मेरी बात मानकर चलना होगा, यह मैं कहे देती हूँ।"
दीदी उसकी जवाबदेही के आडम्बर को देखकर हँसी। बोली, 'यही तो देख रही हूँ, अचानक गम्भीर होना किस गुरु से सीखा तूने! नई दीक्षा है, इसीलिये इतना उत्साह है। मेरी बात मानकर तू चलेगी, इसीलिये तो मैंने तुझे बुलाया है। तेरा अस्पताल तो अभी बना नहीं लेकिन मेरी घर ,बस्ती बन चुकी है। तब तक यही भार सँभाल। तेरी दीदी को ज़रा छुट्टी मिले।"
रोग-शय्या के पास से ऊर्मि को दीदी ने जबर्दस्ती हटा दिया। आज दीदी के गृह राज्य में प्रतिनिधि का पद उसका है। वहाँ अराजकता फैली हुई है। शीघ्र ही इसका प्रतिकार होना चाहिए। इस गृहस्थी के सर्वोच्च शिखर पर जो एकमात्र पुरुष विराजमान हैं