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दो बहनें

उनकी सेवा में कोई मामूली त्रुटि भी न हो, इस महान् उद्देश्य के लिये सम्पूर्ण त्याग-स्वीकार ही इस घर के छोटे बड़े समस्त अधिवासियों की साधना का एकमात्र विषय है। शर्मिला के मन से यह बात किसी प्रकार दूर होना नहीं चाहती कि वह बेचारे अत्यन्त निरुपाय हैं और देह-यात्रा के निर्वाह में शोचनीय भाव से अकर्मण्य हैं। जब देखती है कि चुरुट की आग से भले आदमी का आस्तीन ज़रा जल गया है और उस तरफ़ ध्यान ही नहीं तो उसे हँसी भी आती है और मन स्नेहसिक्त भी हो उठता है। प्रातःकाल मुँह धोकर सोने के कमरे में रखे हुए कल की टोंटी को खुला ही छोड़कर इञ्जीनियर काम की हड़बड़ी में बाहर दौड़ा चला जाता है। लौटकर आता है तो देखता है, फ़र्श पर पानी जमा है और कार्पेट नष्ट हो गया है। शुरू में ही शर्मिला ने इस स्थान पर कल लगाने के विषय में आपत्ति की थी। जानती थी कि इस पुरुष के हाथ से बिस्तर के पास ही उस कोने में प्रतिदिन जल और स्थल मिलकर एक पङ्किल काण्ड खड़ा कर देंगे।

किन्तु इतने बड़े इंजीनियर को रोके कौन! वैज्ञानिक सुविधा की दुहाई देकर हर तरह की असुविधाओं को

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