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दो बहनें

जटिल कर देने में ही उसका उत्साह था। ख़ाहमख़ाह न जाने क्या एक बार दिमाग़ में आया कि बिल्कुल अपने ओरिजिनल प्लान के अनुसार एक स्टोव तैयार कर बैठा। उसके इधर दरवाज़ा, उधर दरवाज़ा, इधर एक चोंगा, उधर और एक चोंगा, इधर आँच की फ़िजूलख़र्ची! बचाकर तेज़ करने का और उधर एक ओर ढालू रास्ते से राख के एकदम गिर जाने का विधान-उसके बाद सेंकने का, तलने का, उबालने का, पानी गर्म करने का-नाना प्रकार के छेद-छाद, गुहा-गह्वर, कल-कौशल! इस फल को उत्साह की भंगी और भाषा में ही मान लेना पड़ा,-व्यवहार के लिये नहीं, शांति सद्भाव की रक्षा के लिये। यह है वयस्क शिशुओं का खेल! बाधा देने से अनर्थ होता है, और फिर भी दो दिन में भूल जाते हैं। हमेशा की बँधी व्यवस्था में मन रमता नहीं, कुछ विचित्र सृष्टि करता है, और स्त्रियों की ज़िम्मेवारी यह है कि मुँह से उनकी बात में हामी भर दें और काम अपने ढँग से करती रहें। इस प्रकार के स्वामी-पालन की ज़िम्मेवारी शर्मिला इतने दिनों से ढोती आ रही है।

इतने दिन तो कट गए। अपने को हटाकर शशांक

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