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दो बहनें

'नहीं देख रही है रूमाल मैला हो गया है? बदलने का ख़्याल ही नहीं';

'वह देख, जूता सीमेंट और बालू में जमकर ठोस-सा बन गया है। बेहरा को साफ़ कर देने का हुक्म देने का भी होश नहीं है उन्हें;

'तकिए का गिलाफ़ बदल देना, बहन';

'फेंक दे उन फटे काग़ज़ों को टोकरी में';

'एक बार आफ़िसवाला कमरा तो देख आ ऊर्मि, मैं निश्चित कह सकती हूँ कि कैशबक्स की चाभी डेस्क पर फेंककर वे बाहर चले गए हैं';

'फूलगोभी के पौधे उठाकर रोपने का समय हो आया, याद रखना';

'माली से कहना, गुलाब की डालें छाँट दें';

'वह देखो, कोट की पीठ में चूना लगा है-इतनी जल्दी क्या है, थोड़ा रुको न-ऊर्मि, ले तो बहन, ज़रा ब्रश कर दे।'

ऊर्मि किताब-पढ़ी लड़की है, कामकाजी लड़की नहीं, तो भी उसे बड़ा आनंद आता। जिस कड़े नियम में वह थी, उससे बाहर आकर जो भी कामकाज था, वह सभी अनियम के समान ही लगता था। इस गृहस्थी

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