पृष्ठ:दो बहनें.pdf/८१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
दो बहनें

की कर्मधारा के भीतर ही भीतर जो उद्वेग है, जो साधना है, वह तो उसके मन में नहीं है; उस चिन्ता का सूत्र उसको दीदी के भीतर है। इसीलिये ये काम उसके लिये खेल हैं। एक प्रकार की छुट्टी–उद्देश्य विवर्जित उद्योग हैं। वह जहाँ इतने दिनों तक थी उससे यह दुनिया संपूर्ण स्वतंत्र है, यहाँ उसके सामने कोई लक्ष्य उँगली नहीं उठाए है और फिर भी दिन काम से भरेपूरे हैं। विचित्र काम है यह। ग़लती होती है, त्रुटि होती है लेकिन उसके लिये कोई कठिन जबावदेही नहीं। दीदी यदि थोड़ा डाँटने की चेष्टा भी करती हैं तो शशांक हँसकर उड़ा देता है, मानों ऊर्मि की ग़लती में ही एक प्रकार का रस है। वस्तुतः आजकल इन लोगों की घर-गिरस्ती में से ज़िम्मेवारी की गंभीरता चली गई है। भूलचूक से कुछ आता-जाता नहीं---ऐसी ही एक ढीली अवस्था पैदा हो गई है। शशांक के लिये यही बड़े आराम और कौतुक का विषय है। ऐसा जान पड़ता है जैसे पिकनिक चल रही हो। और ऊर्मि जो किसी बात से चिंतित नहीं होती, दुःखित नहीं होती,लज्जित नहीं होती, सब कुछ से उच्छूसित हो जाती है, इससे शशांक के अपने मन के गुरुभार कर्म का पीड़न

६८