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दो बहनें

हल्का हो जाता है। काम ख़त्म होते ही---यहाँ तक कि न होने पर भी--उसका मन घर आने को उत्सुक हो उठता है।

यह तो मानना ही पड़ेगा कि ऊर्मि कामकाज में चतुर नहीं। तो भी ध्यान से देखने पर एक स्पष्ट होती है कि चाहे काम के द्वारा न हो, अपने आपको देकर ही उसने इस घर के एक बहुत दिनों से चले आनेवाले अभाव को पूरा किया है। निर्दिष्ट भाषा में बताना कठिन है कि वह अभाव क्या था। इसीलिये शशांक जब घर लौटता तो वहाँ की हवा लहराती हुई छुट्टी की हिलोर का अनुभव करता। वह छुट्टी केवल घर की सेवा में, केवल अवकाश मात्र में नहीं होती, बल्कि उसका एक रसमय स्वरूप है। असल में ऊर्मि के अपने ही छुट्टी के आनंद ने यहाँ के समूचे सूनेपन को पूर्ण कर दिया है, दिन और रात को चंचल कर रखा है। वह निरन्तर चांचल्य कर्मक्लान्त शशांक के रक्त को दोलायित कर देता है। दूसरी ओर शशांक ऊर्मि को लेकर आनंदित है, इस बात की प्रत्यक्ष उपलब्धि ही ऊर्मि को आनन्द देती है। इतने दिनों तक ऊर्मि ने यह सुख पाया ही नहीं। वह केवल अपने अस्तित्वमात्र से ही

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