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दो बहनें

जाने-किस देश का दलाल! डरा-धमका गया है शायद?"

शशांक विस्मित होकर कहता, "तुम उसे कैसे जान गई?"

"मैं उसे ख़ूब पहचानती हूँ। उस दिन जब तुम बाहर चले गए थे तो वह आकर अकेला बरामदे में बैठा रहा। मैंने ही उसे बहुत तरह की बातों में भुला रखा था। उसका घर बीकानेर में है। उसकी स्त्री मर गई है, मच्छरदानी में आग लगने से। नई शादी की फ़िराक़ में है।"

"तो अब से जब मैं निकल जाया करूँगा तब वह रोज़ ही आया करेगा। जब तक स्त्री नहीं मिल जाती तब तक उसके स्वप्न का रंग तो जमा रहेगा।"

"मुझे बता जाना कि उससे कौन-सा काम पटा लेना होगा। उसके रङ्ग ढङ्ग से मालूम होता है, मैं पटा सकूँगी।"

आजकल शशांक की आमदनी के खाते में निन्यानबे के ऊपर की जो मोटी-मोटी संख्याएँ चलन्त अवस्था में हैं वे यदि बीच-बीच में सन्न करें तो उसमें व्यस्त हो उठने योग्य चांचल्य नहीं दिखाई देता। सायंकाल रेडियो

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