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दो बहनें

कितना हर्ज होता है! छोटी बच्ची है, उसे यह सब क्या समझ में आएगा।'

शशांक कहता, 'मुझसे कम नहीं समझती। और समझता, इस प्रशंसा से दीदी आनन्दित हुई होंगी। नादान!

अपने कार्य के गौरव से शशांक ने जब अपनी स्त्री के प्रति मनोयोग को छोटा किया था तब शर्मिला ने उसे अगत्या नहीं मान लिया था, इससे उसने गवे ही अनुभव किया था। इसीलिये इन दिनों अपने सेवा-परायण हृदय के दावे को उसने बहुत कुछ कम कर लिया। वह कहती, 'पुरुष राजा की जाति के हैं, उन्हें बराबर ही दुःसाध्य कर्म का अधिकार प्रशस्त करना होता है। नहीं तो वे स्त्रियों से भी नीचे हो जाते हैं क्योंकि स्त्रियाँ अपने स्वाभाविक माधुर्य और प्रेम के जन्मजात ऐश्वर्य से ही प्रतिदिन संसार में अपने आसन को सहज ही सार्थक किए रहती हैं। पुराने जमाने के राजा लोग बिना प्रयोजन के ही राज्य जीतने के लिये निकल पड़ते थे। उनका उद्देश्य राज्य-लाभ करना नहीं, बल्कि नये सिरे से पौरुष का गौरव प्रमाणित करना हुआ करता था। इस गौरव में स्त्रियों को बाधा नहीं देनी चाहिए।' शर्मिला

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