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दो बहनें

आज तक माना नहीं गया। ऐसी असावधानता यहाँ अक्षम्य थी, कठोर शासन-योग्य मानी जाती थी; इसी विधिबद्ध संसार में आज इतना बड़ा युगांतर उपस्थित हुआ है कि गुरुतर त्रुटियाँ भी प्रहसन के समान हो गई हैं। दोष किसे दें! ऊर्मि यदि दीदी के निर्देश के अनुसार रसोईघर में बेत के मोढ़े पर बैठकर पाक-प्रणाली के परिचालन कार्य में नियुक्त होती और साथ ही साथ मिसरानी जी के पूर्वजावन की बातों की आलोचना चलती रहती तो ऐसे ही समय शशांक अचानक आकर कहता, 'इस समय वह सब रहने दो।

'क्यों क्या करना होगा?'

'इस वक्त मेरी छुट्टी है, चलो विक्टोरिया मेमोरियल की इमारत देख आएँ। उसका घमंड देखकर मुझे क्यों हँसी आती है सो तुम्हें समझा दूंँगा।'

इतने बड़े प्रलोभन से कर्तव्य को छोड़कर जाने के लिये ऊर्मि का मन तत्क्षण चंचल हो उठता। शर्मिला जानती है की पाकशाला से उसकी बहन के अन्तर्धान हो जाने के बाद भी भोजन की उत्कृष्टता में कोई फर्क नहीं पड़ेगा, तो भी स्निग्ध हृदय का थोड़ा सा यन शाक के आराम को अलंकृत करता है। लेकिन आज आराम की बात उठाने

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