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पृष्ठ:दो बहनें.pdf/९८

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दो बहनें

जो सम्बन्ध पिताजी स्वयं स्थिर कर गए हैं उसके प्रति सच्ची न हो सकने को वह सतीत्व-धर्म के विरुद्ध समझती।

लेकिन कठिनाई यह थी कि दूसरी ओर से उसको कोई बल नहीं मिलता! वह मानो एक ऐसी लता है जो धरती को तो कसके पकड़े हुई है किंतु आकाश के प्रकाश से वंचित है, उसकी पक्तियाँ पीली पड़ गई हैं। कभी-कभी वह असहिष्णु हो उठती, मन ही मन सोचती, यह आदमी ज़रा ढंग की एक चिट्ठी भी क्यों नहीं लिख सकता!

ऊर्मि ने बहुत दिनों तक कानवेन्ट में पढ़ा था। और कुछ हो या न हो अंग्रेजी वह अच्छी जानती थी। यह बात नीरद को मालूम थी इसीलिये अंग्रेज़ी में लिखकर उसे अभिभूत करने का प्रण नीरद ने कर रखा था। मातृभाषा में चिट्ठी लिखने से आफत से जी छूटता, लेकिन बेचारे को मालूम नहीं कि उसे अंग्रेजी नहीं आती। बड़े-बड़े शब्दों का संग्रह करता, भारी-भरकम किताबी वाक्यों की योजना करता और इस प्रकार पत्र के वाक्यों को बोरों से लदी हुई बैलगाड़ी की तरह बना देता। ऊर्मि को हँसी आती लेकिन हँसने में भी उसे लाज लगती।

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