पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/११०

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एक राजा. जो-दो भाई साँचोरा ब्राह्मन के संग तें वैष्णव भयो अव श्रीगुमाई जी को सेवक एक राजा गुजरात को, जो दोई भाई साधोरा ग्राशन के संग ते चैप्णय भयो, तिनकी वार्ता को भार मदनई- भावप्रकाश-ये राजस भक्त हैं । लीलामें इनकी नाम 'गोरोचनी' है। सो गोरोचनी वल्लभी की अंतरंग सखी हैं। ये 'कुंजरी' ते प्रगटी है, नातें इनके भावरूप हैं। घार्ता प्रमग--१ सो वे वैष्णव तो श्री गोकुल गए । पाछे वा गाम को राजा इन दोऊ भाई साँचोरा ब्राह्मनन के पास आयो। और बोहोत ही घिघियाइ के विनती कियो, जो-तुम मेरो अपराध क्षमा करो। हों विनु जाने तुम्हारो अपराध कियो । अब तुम कृपा करि मोकों अपनो सेवक करो। जो तुम महापुरुष हो । सो मोकों सरनि लहु। या प्रकार राजा की दीनता देखि बड़े भाईने कह्यो, जो-राजा ! हम तो काहू को सेवक करत नाहीं । हमारे धनी श्रीगुसांईजी श्रीविठ्ठलनाथजी श्रीगोकुल में विराजत हैं। उनकी तुम सरनि जाउ । वे तुमको सेवक करेंगे। वे ईश्वर हैं। सर्व करन समर्थ हैं । ये जो कछु भयो है, सो सब उनकी कृपा जानियो । तातें तुम को सेवक होनों होई तो श्रीगोकुल जॉई उनकी सरनि होऊ । तव राजा बिनती कियो, जो- तुम दोऊ भाई साथ चलो तो हों श्रीगोकुल बलों । काहेत ? जो श्रीगु- सांईजी तो तुम्हारी कृपातें मोकों सरनि लेई तो लेई । नाँतरु मेरे जैसे दुष्ट कर्म करनहार को श्रीगुसांईजी कहा जाने ? या प्रकार राजा की सुद्ध भाव जानिदोऊ भाई राजा के साथ श्रीगो- कुल को चले । सो राजा अपनी रानी कुटुंब सहित दोऊ भाई साचारा ब्राह्मन को मंग लै श्रीगोकुल आयो। तहां श्रीगुसांईजी के दरसन किये । तब दोऊ भाई साँचोरा ब्राह्मन श्रीगुसांईजी