पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/११८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१०७ स्री-पुरुष क्षत्री, जो हीरान की धरती पहचानते कही, जो-हम थोरे से दिन लो तुम्हारे संग चलेंगे। आली जगह हमारी चाकरी लगेगी तहां रहेंगे । तब वेष्णव ने कही, जो-जहां ताई तुम्हारी इच्छा होई तहां ताई चलो। तब वे ग्यारह ठग साथ चले । सो ठगन की दाँव कछु न लगे। सो एक दिन गाम सों कोस एक परे तलाव हतो सो वा तलाव पर आए । तव तलाव बोहोत सुंदर देखि कै उन ठगन कही, जो - रसोई की ठौर वोहोत सुंदर है । यहां रसोई करि के पाछ गाम में जाँई रहेंगे। तब वैष्णव ने चारयो मनुष्यन मों कही, जो-सीधो सामान लकड़ी, वासन ले आओ तो रसोई करें । तव उन मनुष्यन कही, जो-दोऊ जनें तुम्हारे पास हू चहिए । दोइ जने सव सामग्री ले आयेंगे। तब वैष्णव ने कही, जो-हमारे संग तो ग्यारह मनुष्य हैं । तुम सब जने आठी भांति सों सीधो सामग्री ले आओ। तब वे चारयो जनें तो सीधो सामग्री लेन गए । तव वे ठग आपुस में बातें करन लागे । जो-आज दाव परयो है । अब तो चूको मति । तव यह वात वैष्णव ने सुनी। तब पूछी, जो - तुम कहा कहत हो ? तब उन कह्यो: जो - हम ठग हैं । तुमको मारेंगे। बोहोत दिन ते तुम्हारे पाछे लगे हैं। तब वेष्णव ने कही, जो-मैं न्हाय लेउ तब तुम मोकों मारियो। तब वेष्णव कपड़ा उतारि के जल में ठाढ़ो भयो । तव तहां महा दुःख करि के श्रीगुमां- ईजी को स्मरन करि के बोहोत आरत्ति सों विनती करी, जो- महाराज! मेरो कौन अपराध है सो घर न पहोंचन पायो। श्रीठाकुरजी के चरनपरस ह न करन पाया । और आप के ह. दरसन न भए । द्रव्य मिले ते प्रान जात है । द्रव्य भगवद