पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/१३०

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एक जवासी, जाको श्रीगुसांईजीने परे यद्यो मैं तो तिहारे प्रसाद में समुझत नाहीं हो। जो-मोकों तो सीधा ल्याउ । सो अपने हाथ सों रसोई करोंगो। और सीधा न देउ तो भेट ल्याउ । जो - हम तो आज रसोई न करेंगे। काल्हि भंडारी सों सीधा लेके उहाई जाँय के रसोई करेंगे। तब उन वष्णवन कह्यो, जो-भंडार सों लेउगे, सो कहा एक दिन की पैंडो है? तव वह ब्रजवासी ने कह्यो. जो-काल्हि हम उहां रसोई करी हती। सो आज तो यहां रसोई करेंगे। सो सुनि के सव वैष्णव चुप करि रहे । और मन में विचार कियो, जो-यह ब्रजवासी तो भोरो है। जो-प्रभुन की लीला कछ जानी न परे । पाठे पत्र खोलि के देख्यो, जो पत्र में काल्हि की मिती है। फेर कह्यो, पत्र लिखने में भूल गए होईगे। तब महा- प्रसाद खोलि के देखे तो वामें ताजा श्रीनाथजी की वीड़ा हतो । सो खोलि के देखे तो पान ताजा है। तंव वा ब्रजवासी के कहे की विस्वास आयो । तव वासों पूछ्यो. जो-भया ! तू कहे तो तोकों सीधा देई । तू कहे तो प्रसाद देई । तब वा ब्रजवासी ने कह्यो. जो- हमकों तो सीधा देउ। और जहां ताई हम रसोई करे तहां ताई तुम भेट और पत्र तयार करि राखियो । जो-हम रात्रि को यहां न रहेंगे। पाछे उन को वैष्णव सीधो देन लागे। तव उन कह्यो. जो-हम को सीधा है. देउ । तब उन वैष्णवन कहो. जो-तुम तो एक हो दुसरो सीधा कौन को लेउगे ? तब ब्रजवानी ने कह्यो. जो-मरे साथ श्रीगुसांईजी ने एक पर दियो है । तब वैष्णवन ने दो सीधा दिये। नामें घृत और खांड बोहोत दीनी। तब जवानी मीधा लेके जहां श्रीनाथजी विराजन हते तहां आयो। और