पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/१३९

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१२६ दोसौ बावन वैष्णवन की वार्ता यह पद जन-भगवानदास ने गायो। सो सुनि के श्री- गुसांईजी वोहोत प्रसन्न भए । तव श्रीगुसांईजी श्रीनवनीत- प्रियजी की आरति करि कै श्रीनाथजीद्वार पधारे । तव जन भगवानदास दोऊ भाई साथ गए। सो श्रीगुसांईजी ‘रुद्र कुंड' में स्नान करि के श्रीगोवर्द्धन पर्वत पर पधारे । सो श्रीगोवर्द्धन- नाथजी को राजभोग समर्यो । पाछे भोग सरायो। ताही समे जन-भगवानदास ने यह पद गायो । सो पद राग: साग्ग आगें आउरी छकिहारी। जब तू बोली तब हों टेरयो सुनी न टेर हमारी ॥ मैया छाक सवारी पठई तू कित रही अवारी । अहो गुपाल गेल हों भूली मधुरे वोलन पर वारी ॥ श्रीगोवर्द्धन धरन धीर सों प्रीत वढी अति भारी। 'जन-भगवान' जाय बलिहारी तनकी दसा बिसारी॥ यह पद जन-भगवानदास ने गायो। सो सुनि के श्री- गुसांईजी श्रीनाथजी बोहोत प्रसन्न भए । पाछे श्रीनाथजी की राजभोग-आर्ति करि कै श्रीगुसांईजी नीचे पधारे। सो अपनी बैठक में गादी-तकियान के ऊपर विराजे । सो जन-भगवानदास श्रीगुसांईजी के दरसन करि बोहोत आनंद पाए । जो-श्रीठाकुरजी ब्रज में प्रगटे कहे हैं। सो यही हैं, सो धन्य हमारो भाग्य है । जो-हम को ऐसें दरसन भए । सो ऐसें आपुस में दोऊ भाई बातें करते। सो भगवदुरस में छके रहते। काहू बात की स्मृति राखते नाहीं । श्रीगोवर्द्धननाथजी इन के पद सुनते । सो बोहोत ही प्रसन्न रहते ।