पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/१४२

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कल्यान भट्ट, खंभालिया को १२९ अव श्रीगुसांईजी के सेवक फैल्यान भट, खंभालिया के मासी, तिनकी वार्ताको भाव कहत है भावप्रकाश–चे सात्विक भक्त हैं । लीला में इनको नाम 'मधुरिमा' है। ये 'सुसीला' तें प्रगटी हैं, तातें उनके भावरूप हैं। और 'सुसीला की एक सखी है। वाको नाम 'देवका' है । सो यहां वेटी भई ये खमालिया में एक गिरिनारा ब्राह्मन के प्रगटे । सो पड़े वोहोत । पाठे इन को व्याह भयो । सो एक बेटी भई । वाको नाम देवका राख्यो । 3 वार्ता प्रसंग-१ सो एक समै श्रीगुसांईजी द्वारिकाजी पधारे हते । सो श्रीरनछोरजी के दरसन किये। सो तहां बोहोत दिन लों रहे। ता पाछे श्रीगुसांईजी आप उहां तें विदा होंइ कै चले । सो खंभालिया कों पधारे । सो तहां डेरा किये। पाछे श्रीगुसांईजी आप गादी तकियान के ऊपर विराजे । तव सब वैष्णव श्री- गुसांईजी के दरसन को आए। तिनके संग कल्यानभट हू तहां आए । तव उन हाथ जोरि कै विनती कीनी, जो-महाराजा- धिराज ! मोकों नाम सुनाइये । तव श्रीगुसांईजी आप कल्यानभट सों श्रीमुख सों आज्ञा किये, जो-तुम स्नान करि आऊ। हम तुम को नाम-निवेदन दोऊ संग करवावेंगे। तब वे स्नान करि आए । पाछे हाथ जोरि कै श्रीगुसांईजी के आगे ठाढ़े हों। रहे। तव श्रीगुसांईजी आप कृपा करि के कल्यान भट को नाम सुनायो। ता पाळे निवेदन करवाए । तव कल्यान भट ने यथा- सक्ति भेट करी । ता पाठे श्रीगुसांईजी आप रसोई करि के श्रीठाकुरजी को भोग समप्यों । समयानुसार भोग सराय के श्रीगुसांईजी आप भोजन किये । तव सब सेवक टहलुवा रसोई करन लागे । सो रसोई करि श्रीठाकुरजी को भोग समप्यो ।