पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/१९५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१७८ दोसी बीवन वैष्णवन की वार्ता गए। यह सुनिकै वा क्षत्रानी के घर वैष्णव आए। तव वा क्षत्रानी ने वैष्णव सों कही, जो-तुम श्रीठाकुरजी कों पधराइ ले जाउ। तव वे वैष्णव श्रीठाकुरजी कों वा क्षत्रानी के घर तें अपने घर पधराइ ले गए। भावप्रकाश—याको अभिप्राय यह है, जो - जदपि या क्षत्रानी की जीव दैवी हतो, परि वाकी देह आसुरी हुती । और मन हू आसुरी हुतो । तातें प्रभु इन पास सेवा नाहीं कराए । सो वैष्णव श्रीगुसांईजी के वचन स्मरन करि कै प्रीति सों श्रीठाकुरजी की सेवा करते । पाछे वह क्षत्रानी वोहोत खेद करन लागी। सो वह क्षत्रानी श्रीगुसांईजी की ऐसी कृपापात्र हती। तातें इनकी वार्ता कहां तांई कहिए । वार्ता ॥११९॥ . अव श्रीगुसाईजी के सेषक भील दोइ, द्वारिकाजी के मारग मे रहते, तिनकी पातको भाव कहत है- भावप्रकाश-ये सात्विक भक्त हैं, लीला में ये 'पुलिंदिनी' के यूथ के हैं । 'माधुरी' तें प्रगटे हैं, तातें उन के भावरूप हैं । वार्ता प्रसंग-१ सो एक समै श्रीगुसांईजी श्रीगोकुल तें द्वारिकाजी श्री- रनछोरजी के दरसन कों पधारे। तहां ये भील दोइ आछे कपरा पहरि मुसाफिर वनि मारग में श्रीगुसांईजी के डेरान के पास उतरे । सो भील चोरी करन के लिये उतरे। पाछे सब कोऊ अधिकारी भंडारी सेवक टहलुवान ने बरजे। तब श्री- गुसांईजी आप कहे, जो रहन देहु । पाछे रात्रि को उन भीलन कों श्रीगुसांईजी जूंठनि दीनी । तब जूंठनि लेत ही उन दोऊ । भीलन की बुद्धि फिरी। सो सगरी रात्रि श्रीगुसांईजी के डेरान की चौकी दिये । पाठें भोर ही उन भीलन में श्रीगुसां-