पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/२०३

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१८८ दोसौ बावन वैष्णवन की वार्ता अब मैं जात हों। यह सुनि के आसकरन ने तानसेन कों बिनती करि कै बैठाये । कहे, जो - यह पद तुम अपनो करि कै गाए के कोई और कौ है ? तव तानसेन ने आसकरन सों कही, हे राजा ! ऐसो पद मोसों कोटि जन्म में हू न आवे । यह तो श्रीगोकुल में श्रीविठ्ठलनाथ गुसांईजी हैं, सो साक्षात् श्रीकृष्ण प्रगट भए हैं। तिन के अंतरंग सेवक गोविंदस्वामी हैं, उनने गायो है। मैं उन सों सिखे हों। उनसों साक्षात कृष्ण वार्ता करत हैं, संग खेलत हैं। वे बड़े भगवदीय हैं। उनकी कृपा तें मोकों इतनो आयो है । यह सुनि कै आसकरन ने कही, जो- ऐसो कछू उपाय बतावो, जो-मैं गोविंदस्वामी के दरसन करों। तब तानसेन ने कही, जो-वे गोविंदस्वामी श्रीगुसांईजीके सेवक भए बिना अपने पास काहू को बैठन नाहीं देत । मैं हू जब श्री- गुसांईजी कौ सेवक भयो, श्रीगुसांईजी आज्ञा दिये, तव मोकों बताए हैं। तब आसकरन ने कही, मैं श्रीगुसांईजी कौ सेवक निश्चै होउंगो। तब तानसेन ने कही, आछौ। तब आसकरन ने कही, तुम मेरे संग चलो। श्रीगुसांईजी सों विनती करि कै मोकों सेवक करावो । तब तानसेन आसकरन पास रहे । पाठे आसकरन ने सगरे गवैयान कों बिदा किये । कयो, अब तुम्हारे पदन सों मोकों काम नाहीं है । सो सगरे उठि गए। पाछे वृंदावनी महंत हते, तिनहू कों बिदा किये । जाउ तुम्हारे हू पद सों मेरो काम न होंई। सो सगरे उठि गए । पाछे आसकरन राजा ने श्रीगोकुल आईवे की तैयारी करी। सो 'नरवर' सों कूच कियो। तब अपनो मनुष्य दोरायो, जो- खबरि ल्याउ । श्रीगुसांईजी श्रीगोकुल होइ तो श्रीगोकुल