पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/२०५

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दोसौ वाचन वैष्णवन की वार्ता कों करूना आई। तव श्रीगुसांईजी श्रीमुख सो आज्ञा किये, जो - आसकरन ! कछ चिंता मति करो। प्रभु बड़े हैं सब आछी करेंगे। धीरज राखि । जाँई के श्रीयमुनाजी में न्हाय आवो । तव आसकरन प्रसन्न होंइ कै श्रीयमुनाजी में न्हाइवे गए। न्हाय के अपरस में आए। तव श्रीगुसांईजी ने नाम सुनायो। तव आसकरन की निर्मल बुद्धि होंइ गई। तव आसकरन ने श्रीगुसांईजी सों विनती करी, जो - महाराजा- धिराज ! ब्रह्मसंबंध कराइए । तव श्रीगुसांईजी ने कही, जो- तुम आजु व्रत करो। राजकाज बोहोत किये हो । सो काल्हि तुम को ब्रह्मसंबंध करावेंगे। तव आसकरन दंडवत् करि के व्रत कियो। पाछे दूसरे दिन राजभोग सरे पाछे श्रीगुसांईजी आसकरन कों श्रीनवनीतप्रियजी के आगे समर्पन कराये । तुलसी श्रीनवनीतप्रियजी के चरनाविंद पर समपी । ता समय आसकरन को लीला सहित दरसन भए। सो आसकरन ने यह पद राग सारंग में गायो- राग सारंग जै श्रीविठ्ठलनाथ कृपाल । कलिके महापतित अघरासी अपने करि के किये निहाल ॥ पुरुषोत्तम निज कर ले दीने ऐसें दानी महा दयाल । 'आसकरन' कों अपनो करि कै पुष्टि प्रमेय बचन प्रतिपाल ॥ यह कीर्तन सुनि के श्रीगुसांईजी बोहोत प्रसन्न भए । पाठे राजभोग-आति श्रीनवनीतप्रियजी की श्रीगुसांईजी करि के पाछ अनोसर कराय के श्रीगुसांईजी अपनी बैठक में पधारे । तब तानसेन ने श्रीगुसांईजी सों बिनति करी, जो-