पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/२१०

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राजा आसकरन. नरवरगह के १९५ न्हाय के सेवा करन को गए। सो राजभोग आरति तांई सगरी सेवा करि पाजें आसकरन विदा होंइ श्रीठाकुरजी सों, भीतरिया दोऊन कों समुझाय कह्यो, जो-सेवा में सावधान रहियो । मोकों लरिवे जानो है । सो यह प्रतिबंध मोकों सेवा में आयो है । सो मेरे अभाग्य हैं। परंतु गए विना न चले। तातें हम जात हैं। तुम्हारे परम भाग्य हैं, जो-प्रभुन की सेवा में रहोगे। तव भीतरियान ने कही, जो - तुम जाऊ, हम सों जितनी वनेगी तितनी सेवा मन लगाय के करेंगे । तुम काहू वात की चिंता मति करियो । तव आसकरन मंदिर को दंडवत् करि वाहिर अपनी कचहरी में आए । तव दीवान ने विनंती करी, जो - सगरी फौज तैयार है । तुम्हारी ढील है। और दक्षिन के राजा की फौज अपने अमल में आय चुकी है। यह सुनि के आसकरन ने अपने घोड़ा पै असवार होंइ के उह राजा के सन्मुख चले । सो कोस दोइ को वीच रह्यो। तव उह राजा ने कही, काल्हि लराई लेऊंगो । सो आसकरन ने हू डेरा उहां किये । पाछे रात्रि रहे। ता पार्छ प्रातःकाल आसकरन ने दीवान सों कही, जो - मैं दुपहर पाछे लरूंगो, जो - वीच में उह राजा लरे तो तुम लरियो । तव दीवान ने कही, जो- आछो । पाठें राजा तो न्हाय कै मानसी सेवा करन वैठयो । ताही समै में उह राजा की फौज चढ़ी। सो लराइ होंन लागी। तव दीवान ने आसकरन सों कह्यो, जो - अव लराइ होत है। तुम्हारे चढ़े विना सगरी तुम्हारी फौज भाजेगी। पाठे दुपहर के तुम चढिवे के कहा करोगे ? यह सुनि के आस- करन उठि के वागो पहिरयो । पाग वांधी, पाछे घोड़ा पर ..