पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/२१७

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२०० दोमो पावन वैष्णवन की वार्ता टीला पर रात्रि-दिन बैठि रहते । विप्रयोग को अनुभव करते। मानसी सेवा करते । सो आसकरन ऐसें भगवदीय हे । सो जो कोई कीर्तन गावते तामें अपने प्रमु की छाप धरते । 'आसकरन प्रभु मोहन नागर' । मोहनजी घर के सव्य हैं । या प्रकार आसकरन श्रीगोकुल में रहते। 'जसोदा घाट' एक बार नित्य न्हाय जाते। धार्ता प्रसग-2 और एक वार होरी के दिन हते । सो आसकरन 'गोप- कुआ' 'जसोदाघाट' न्हाइवे को आवत हते। इतने में रमनरेती में मुरली श्रीठाकुरजी ने वजाई । सो मुरली को सब्द आस- करन ने सुन्यो। सो सुनतही न्हाइवोतो भूलि गये । पाछे फेरि 'रमनरेती' गए। तहां जाँय के देखे तोअलौकिक गोकुल नंदालय की लीला कौ दरसन भयो । सो ब्रजभक्त श्रीठाकुरजी के संग होरी खेलन कों आई हैं। सो श्रीवलदेवजी सखा गोप सहित एक ओर हैं। और एक ओर ब्रजभक्त मिलि कै होरी खेलन लागे। तहां तें एक गेल 'रावल' की श्रीस्वामिनीजी के घर की है । ता दिसा श्रीस्वामिनीजी ठाढ़ी हैं। एक गेल बल- देवजी की है । सो अपने संग के सत्रधारी बड़े गोप लिये ठाढ़े हैं। एक गेल महावन की है। ता दिसा नंदरायजी जसोदाजी ठाढ़े हैं। एक गेल घोख जहां गांई कौ खरिक है तहां की है। ता दिसा श्रीठाकुरजी अपनी बराबर के सखा लिये ठाढ़े हैं। परस्पर होरी खेलत हैं । सो या प्रकार आसकरन को लीला सहित दरसन भयो । सो आसकरन को ऐसो आनंद भयो, जो-देहदसा रही नाहीं। उन्मत्त भए दरसन करन लागे । सो